ज़िन्दगी में कुछ भी
कहानी जैसा नहीं होता या तो वो हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा होता है या हमें सुनाया
गया किसी और का किस्सा होता है और ये किस्सा भी कुछ ऐसा ही है | ये कहानी दो लाइन्स पर
आगे बढती है जिसमें एक लाइन मरीज का परिवार वाला बार बार कहता है कि “आप मेरे लिए
भगवान् स्वरुप हो और ये जीवन जो है वो आप का ही दिया हुआ है” और दूसरी लाइन डॉ.
सोचता है कि “ अगर ये बार बार भगवान् बोल रहा है तो भगवान् के साथ धोखा थोडा न
करेगा” |
ये
बात तक़रीबन 1 साल पहले की है, शहर में डेंगू फैला हुआ था | शहर में सारे अस्पताल
खचाखच भरे हुए थे, ऐसे
में एक आदमी अपनी बूढी माँ को लेकर अस्पताल आता है और रिक्वेस्ट करता है कि उसकी
माँ को देख लीजिये | डॉ. उसकी माँ को देखते हैं और कंडीशन को देखते हुए
आई.सी.यू. में एडमिट कर देते हैं | डॉ. अगले 4-5 दिन में उसकी माँ को ठीक
करके घर भेज देते हैं और क्यूँकी माँ की उम्र ज्यादा थी और, और भी कई बीमारियाँ थी
जिसके लिए उस आदमी को डॉ. को दिखाने आना पड़ता था | जब भी वह डॉ. को दिखाने आता तो कृतज्ञ हो
कर एक ही बात कहता कि “आप मेरे लिए भगवान् स्वरुप हो और ये जीवन जो है वो आप का ही
दिया हुआ है” | डॉ. को भी अच्छा लगता और वो उस आदमी को प्रोफेशनल
तरीके से न डील करते हुए पर्सनल तरीके से देखते, उसके कॉल्स अपने पर्सनल टाइम में भी
उठाते और सलाह देते | कुछ समय बाद उसकी माँ सही हो गयी |
उस आदमी के कुछ 3 भाई थे जिसमें से एक
भाई शराबी था | वो आदमी अपने शराबी भाई को दिखाने डॉ. के पास आया जिस
पर डॉ. ने बताया कि मरीज ने शराब पी पी कर अपने लीवर को ख़राब कर लिया है | डॉ. ने ट्रीटमेंट लिखा
और आगे गेस्ट्रोएंट्रियोलोजिस्ट को दिखाने को कहा | उस ने शहर में गेस्ट्रोएंट्रियोलोजिस्ट
खोजा पर जब कोई नहीं मिला तो उसने अपने भाई को घर में ही रखा और डॉ. का बताया हुआ
ट्रीटमेंट जारी रखा | कोरोना का दौर चल रहा था, उसी दौरान एक रात डेढ़
बजे उस आदमी ने डॉ. को कॉल किया कि मेरे भाई की तबियत बहुत ख़राब है और कोई भी
अस्पताल एडमिट नहीं कर रहा | डॉ. खुद कोरोना ड्यूटी पर थे पर फिर भी उन्होंने
अस्पताल बुला लिया | क्यूँकी साथी डॉक्टर भी साथ में थे तो उन्होंने सलाह
दी कि आप को कोई आर्थिक फायदा तो है नहीं आप मामले को रफा दफा कीजिये, तो डॉक्टर ने जवाब
दिया कि “जिम्मेदारी तो लेनी ही पड़ेगी मैंने ये प्रोफेशन जिम्मेदारी से भागने के
लिए तो नहीं उठाया “ और डॉ. मरीज देखने चले गये | जब उन्होंने मरीज को देखा तो सलाह दी कि
यह बीमारी यहाँ ठीक नहीं हो सकती आप को दिल्ली जाना पड़ेगा | वो आदमी अपने भाई को
लेकर लीवर के सबसे बड़े इंस्टिट्यूट आई.एल.बी.एस. दिल्ली चला गया | वहाँ मरीज तक़रीबन 1
महीने भर्ती रहा उसकी कंडीशन वहाँ और ख़राब होती गयी | दिल्ली में एक महीने के इलाज़ के दौरान उस
आदमी का तक़रीबन 20 लाख का खर्चा हो गया | इस एक महीने के दौरान वह आदमी लगातार डॉ.
के संपर्क में रहा और क्यूँकी डॉ. भी यह समझ पा रहे कि अकेला है तो वह न केवल उसका
ढाढस बंधा रहे थे बल्कि मेडिकल सलाह भी दे रहे थे |
तक़रीबन
एक महीने मरीज़ वेंटिलेटर पर रहा और उस की हालत बद से बत्तर होती जा रही थी और
कोरोना की वजह से कोई भी अस्पताल अपने यहाँ इस केस को लेने के लिए तैयार नहीं था
ऐसे में उस आदमी ने डॉ. को रोते हुए कॉल किया उसने अपने भाई कंडीशन के बारे में
बताया और बोला कि पैसा भी पानी की तरह जा रहा है, भाई के भी ठीक होने के कोई आसार नहीं हैं
और शायद बच भी नहीं पायेगा, हालत
बहुत ख़राब है मैं अन्दर तक टूट चूका हूँ आप ही बताइए मैं क्या करूँ ? मैं अपने भाई को वापस
अपने शहर लाना चाहता हूँ | ये वक़्त बहुत कठिन था क्यूँकी कोरोना के चलते कोई भी
अस्पताल भर्ती करने के लिए राजी नहीं था और कोरोना के आंकडें अब कोरोना से मौत के
आंकड़ों में बदलने लगे थे | डॉ. ने वक़्त और व्यक्ति की नजाकत समझते हुए कहा कि आप
ले आइये हम से जो भी बेस्ट बन पड़ेगा हम करेंगे | वह आदमी थोडा शांत हुआ और वह अपने भाई को
लेकर अपने शहर आ गया और अस्पताल में भर्ती कर दिया | डॉ. ने मरीज़ को आई.सी.यू. शिफ्ट किया और
दिन रात एक करके अगले 10-11 दिनों में मरीज को वेंटिलेटर से बाहर शिफ्ट कर दिया और
17-18 दिन बाद मरीज़ की छुट्टी कर दी | इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि
उस आदमी से डॉ. तथा अस्पताल ने कोई भी पैसों की बात नहीं की | क्यूँकी डॉ. इस भरोसे
में थे कि पैसे तो वह जमा कर ही देगा क्यूँकी एक तो उसकी माली हालत ठीक थी दूसरा
वह लगातार डॉ. को एक ही बात बोले कि आप तो मेरे भगवान् हो इसलिए वह आदमी धोखा थोडा
न करेगा क्यूँकी रिश्ता एक -दो दिन का तो था नहीं |
मरीज
ठीक हो कर घर चला गया | उस आदमी ने डॉ. को कॉल कर के बताया कि सर मेरी
फाइनेंसियल कंडीशन थोडा अभी ठीक नहीं है मैं अस्पताल का बिल अगले 10 -15 दिन में
जमा करा दूँगा | अब 10-15 दिन बाद जब अस्पताल ने कॉल किया तो वो कभी
आज तो कभी कल में टालने लगा और ऐसा करते करते 5 महीने बीत गये | अब एक दिन डॉ. ने खुद
फ़ोन किया तो पता चला कि उनका नंबर तो ब्लॉक किया हुआ है और व्हाट्स एप पर भी कोई
जवाब नहीं दे रहा | कुछ दिनों में अस्पताल का नंबर भी उस आदमी ने ब्लॉक
कर दिया |
बस
इतना सा ही है ये किस्सा जिसमें एक आदमी ने भगवान् बोल बोल के भगवान् को ही धोखा
दे दिया |
सोशल मीडिया से लेकर अख़बारों के पन्ने पटे पड़े होते हैं ऐसे किस्सों से कि डॉ. ने ये किया , उस अस्पताल ने पैसों के लिए वो किया | पर इस किस्से पर क्या नजरिया है आप का जब डॉ. ने न केवल अपनी जिम्मेदारी को कोरोना जैसे कठिन समय में पूरा किया बल्कि उसे पर्सनल अटेंशन देते हुए मरीज़ को मरने से बचाया | बात लाख डेढ़ लाख की नहीं है बात उस बिश्वास की उस पतली डोर की है जिसमें उस आदमीं ने डॉ. को भगवान् बोला और उस डॉ. ने अपनी सीमाओं से बाहर जा कर मरीज़ को बचाया और फिर जब पैसों की बात आई तो वो आदमी भगवान् को चूना लगा कर चपत हो गया |
एक
कहानी बचपन में पढ़ी थी “बाबा भारती और डाकू खड्ग सिंह” की जिसमें डाकू खड्ग सिंह
ने अपाहिज के वेष में धोखे से बाबा भारती से घोड़ा छीन लिया था, जिसमें जाते जाते बाबा
डाकू से कहते हैं कि कभी इस घटना का जिक्र किसी से मत करना वरना लोग दीन दुखियों
पर विश्वास नहीं करेंगे | यह
घटना भी कुछ ऐसी ही है जो अब ये सवाल मेरे लिए छोड़ गयी कि अगली बार कोई उसी भगवान्
वाले विश्वास के साथ कोई किसी डॉ. के पास जाए तो डॉ. को क्या करना चाहिए ?